Aligarh
बुलबुले हबीब पेंटर की कब्र पर उनके परिवारी जनों ने 34 वीं बर्सी पर श्रद्धा के फूल चढ़ाएं: बुलबुले हिंद हबीब पेंटर की बर्सी के दिन कब्र पर परिवारी जनों ने चढ़ाये श्रद्धा के फूल।
अलीगढ़। दिनेश पाठक। हबीब पेंटर को नई पीढ़ी भले ही उनका नाम भूल गई हो। मगर सुर संगीत को समझने व कव्वाली सुनने वालों मैं कोई ऐसा शौकीन नहीं होगा जो उनके नाम से वाकिफ ना हो। बॉलीवुड तक मैं आज भी उनके चाहने वालों की कमी नहीं है। फुकरे, बॉर्बी, जासूस, खामोशियां, व फ्यूरियस, ऐसी फिल्मों के अभिनेता अली फजल उनकी गजलों के दीवाने हैं।
कई दशक पूर्व उन्हें प्रख्यात कव्वाल हबीब पेंटर ने कव्वाली, बहुत कठिन है डगर पनघट की, को शेयर किया। उसके बाद तो हबीब पेंटर को सर्च करने वालों का तांता लगा हुआ है, गूगल व यूट्यूब पर खूब देखे गए हैं। अफसोस है कि ऐसे महान कव्वाल की याद में न तो कोई आयोजन होता है। और न ही उनके चाहने वाले उनकी स्मृति पर फूल चढ़ाने तक पहुंच पाते हैं। उनके परिवारी जन अपने बेटे-बेटी एवं उनके पोते हर वर्ष उनकी स्मृति पर श्रद्धा के फूल चढ़ाते रहे हैं।
सोमवार को उनकी 34 वीं बरसी थी। उनकी कब्र एवं हबीब पेंटर के गुरु हजरत शाह की कब्र की गद्दी शाहजहांमाल अटकंबा अलीगढ़ में नशीकुद्दुस मियां संभाल रहे हैं। आपको अवगत कराना है कि हबीब पेंटर का जन्म 19 मार्च 1920 को उस्मानपाड़ा अलीगढ़ में हुआ था। प्रारंभिक दौर में जीवका हेतु घरेलू चित्रकार के रूप में चलाते थे। इसलिए हबीब पेंटर कहलाए गए। उसके बाद उन्होंने कव्वालियां ही नहीं सूफियाना कलाम भी गाये कृष्ण सत्संग व अध्यात्मिक गीतों को भी अपना सुर देते रहे।
महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, डॉ राधाकृष्णन, ज्ञानी जैल सिंह, फखरुद्दीन अली अहमद, चौधरी चरण सिंह, और बख्शी गुलाम मोहम्मद, आदि नेता उन्हें बहुत सम्मान देते थे। अलीगढ़ में उनकी याद में बुलबुले हिंद पार्क भी बनवाया गया था। और 22 फरवरी 1987 को वह सारे जहां से अलविदा हो गए थे।
हबीब पेंटर का नाम गायकारी में ही नहीं उन्होंने देश हित में भी सराहनीय कार्य किया अपने परिवार में वह 4 पुत्र एवं 7 बेटी छोड़ कर गए। उनके पहले बेटे अनीस पेंटर के पुत्र गुलाम फरीद पेंटर उनकी राह पर चलकर उनके द्वारा गजल एवं कव्वाली गाकर अपने दादा का नाम रोशन कर रहे हैं।
दिनेश पाठक सोमवार को उनके परिवारीजनों से मिले परिवारी जनों ने पत्र को बताया कि हमारे दादा ने सन 1962 में भारत और चीन के युद्ध के दौरान नेफा लद्दाख बॉर्डर पर 3 माह निरंतर रूप से रहकर हमारे देश के वीर सैनिक फौजियों की हौसला अफजाई की थी। उस मद्दे के जमाने में हबीब पेंटर ने एकत्रित किए गए 39 लाख 37 हजार रुपए का नगद सरकार को दान दिया था। यह सब जानकारी परिवारी जनों को (एलआईयू) खुफिया एजेंसी से प्राप्त हुई थी। हबीब पेंटर की कब्र पर श्रद्धा के फूल चढ़ाने वाले उनके परिवारी जन गुलाम फरीद पेंटर,शाने हबीब पेंटर, गुड्डू पैंटर, शाहनवाज पेंटर, आदि मिलने वालों ने श्रद्धा के फूल चढ़ाएं।
उनके प्रमुख कव्वाली एवं गाने
Baap Ki Nasihat Beti Ko
Bahut Kathin Hai Dagar Panghat Ki
Bura Kisko Mano Bhala Kisko Jano
Yeh Meri Haqiqat Hai
Kahe Ko Byahe Bides
Main Ab Kuch Kah Nahin Sakta
Bhagwan Isi Men Milte Hain
Yahan Se Chala Gaya Kotwal
Kuchh Bhi Nahi Kuchh Bhi Nahi
Aaj Tona Main Aesa Banaoongi
Gharka Bhedi Lanka Dhaye
Kitni Zalim Yeh Duniya Hai
Kare Koi Bhare Koi
Fana Itna to Ho Jaoon
Main Taiba Ki Janib Chala
Magar Main Kah Nahin Sakta
Phulan Jalti Chita Hai
Bataaoon Tumhen Kya
Kuchh Bhi Nahin Kuchh Bhi Nahin
Main To Anware Nabi Hun
Bahot Kathin hai dagar pan ghat ki
Bura Kisko Maanu Bhala Kisko Jaanu
02/22/2021 03:05 PM