Aligarh
एएमयू में मानसिक स्वास्थ्य पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन: विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर हुई चर्चा।
अलीगढ़। क्लब फॉर शॉर्ट इवनिंग कोर्सेज (सी.ई.सी.) एवं कल्चरल एजुकेशन सेंटर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को विश्वविद्यालय परिसर में ‘मानसिक स्वास्थ्य’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के बीच मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाना तथा शैक्षणिक दबाव और सामाजिक जीवन के बीच संतुलन बनाने के तरीकों पर चर्चा करना था।
अलीगढ़ की एसपी क्राइम मनीषा कुरियन ने कहा कि युवाओं को नशा मुक्त समाज की स्थापना करने के लिए अपना सराहनीय योगदान करना चाहिए और साइबर अपराधों से बचने के लिए जो ऐप है और जो फ्री टोल नंबर है उनको याद रखना चाहिए ताकि सही समय पर सही शिकायतों का निस्तारण किया जाए। साथ ही उन्होंने कहा कि युवाओं और युवतियों को अपनी अपनी मानसिक दिशा को स्थिर रखने के लिए और खुश रहने के लिए अपने वक्त का सही इस्तेमाल करें और मोबाइल का उतना ही इस्तेमाल करें जितना उनकी पढ़ाई लिखाई के लिए जरूरी है। क्योंकि मोबाइल एक तरफ जहां सोशल मीडिया पर अच्छी चीजें सिखाता है, वहीं पर मन को भटकाता भी है और यह वक्त की भी खराबी है। लिहाजा मोबाइल का सही इस्तेमाल करना इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। उन्होंने कहा कि अलीगढ़ पुलिस हमेशा आपकी समस्याओं का समाधान करने के लिए तत्पर है और जनता को पुलिस के करीब आना होगा और पुलिस को जनता के करीब जाना होगा, ताकि आपस का एक सामंजस्य बरकरार रह सके और समाज में होने वाली तमाम बुराइयों को दूर किया जा सके।
कार्यशाला में तीन विशेषज्ञ संसाधन व्यक्तियों ने विद्यार्थियों को संबोधित किया और मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न आयामों पर अपने महत्वपूर्ण विचार साझा किए।
डॉ. सरमद अज़ीज़ (सीनियर रेजिडेंट, मनोचिकित्सा विभाग) ने मानसिक स्वास्थ्य के वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए विद्यार्थियों को स्व-जागरूकता (सेल्फ अवेयरनैस) और भावनात्मक संतुलन (इमोशनल बैलेंस) बनाए रखने की सलाह दी। उन्होंने जोर देकर कहा कि अपनी भावनाओं को पहचानना और प्रबंधित करना एक कुशल जीवन कौशल है। उन्होंने आगे बताया कि डिजिटल डिटॉक्स का मतलब है कुछ समय के लिए मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी और सोशल मीडिया जैसे डिजिटल उपकरणों से दूरी बनाना ताकि मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ाई जा सके। लगातार स्क्रीन देखने से तनाव, नींद की कमी और ध्यान भटकने जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं। डिजिटल डिटॉक्स हमें फिर से स्वयं से जुड़ने, संतुलन बनाने, और मानसिक स्वास्थ्य सुधारने में मदद करता है। थोड़ा समय ऑफलाइन रहना दिमाग के लिए एक रीसेट बटन जैसा है।
डॉ. रिक्जा परवेज (क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं कंसल्टेंट) ने मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि ‘मानसिक स्वास्थ्य’ की देखभाल उतनी ही आवश्यक है जितनी शारीरिक स्वास्थ्य की। एक मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही अपने लक्ष्यों को अधिक प्रभावी ढंग से प्राप्त कर सकता है। उन्होंने तनाव प्रबंधन की विभिन्न तकनीकों के बारे में भी जानकारी दी। विश्वविद्यालय जीवन में आनंद के साथ-साथ अकादमिक दबाव, परिवार और जीवन प्रबंधन जैसे आंतरिक संघर्ष भी होते हैं। असली सफलता थककर टॉपर बनने या सारे दबावों को पहदवतम करके बंतमतिमम रहने में नहीं, बल्कि संतुलन बनाने में है। सही समय, सही काम हमें सब कुछ एक साथ करने के लिए नहीं, बल्कि स्पष्टता और पूरी उपस्थिति के साथ सही समय पर सही काम करने के लिए बनाया गया है। जीवन कोई पाठ्यक्रम नहीं है, बल्कि एक लंबा सफर है जो हमारी अपनी चुनौतियों से खुलता है। दुनिया को और टॉपर्स की नहीं, बल्कि संवेदनशील और बेहतर दुनिया बनाने वाले इंसानों की जरूरत है।
डॉ. सय्यद नूर आलम (इस्लामिक स्कॉलर एवं स्पिरिचुअल लीडर) ने मानसिक शांति प्राप्त करने के आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर बात की। उन्होंने कहा कि आत्म-संयम और आध्यात्मिक सहारा व्यक्ति को नकारात्मकताओं से दूर रखकर जीवन में सकारात्मकता और शांति की ओर ले जाता है।
इस अवसर पर डॉ0 अहमद मुजतबा सिद्दीकी, अध्यक्ष, क्लब फॉर शॉर्ट इवनिंग कोर्सेज, ने अपने संबोधन में कहा कि छात्रों के करियर मार्गदर्शन और मानसिक तनाव को कम करने के लिए ऐसी कार्यशालाओं की एक श्रृंखला भविष्य में भी आयोजित की जाएगी। उन्होंने शिक्षकों और छात्रों के बीच संवाद को और मजबूत करने पर जोर दिया, ताकि छात्रों की समस्याओं का समाधान एक रचनात्मक माहौल में किया जा सके। उन्होंने इस सफल आयोजन पर बधाई देते हुए संस्था की इस पहल की सराहना की और इसे समय की आवश्यकता बताया और कहा कि मानसिक स्वास्थ्य मानवीय समृद्धि का एक अनिवार्य आधार है। यह केवल किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक सामूहिक सामाजिक दायित्व भी है। एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि हम मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाएँ, इससे जुड़े कलंक को दूर करें और एक ऐसा वातावरण बनाएँ जहाँ हर व्यक्ति बिना किसी झिझक के अपने मन की बात कह सके। याद रखें, दिमागी स्वास्थ्य भी उतना ही जरूरी है, जितना शारीरिक स्वास्थ्य। एक स्वस्थ मन में ही एक स्वस्थ शरीर का निवास होता है।
प्रोफेसर मोहम्मद नवेद खान, कोऑर्डिनेटर, कल्चरल एजुकेशन सेंटर, ने कहा कि सी.ई.सी. का उद्देश्य केवल शैक्षणिक शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विद्यार्थियों में सृजनात्मक, कलात्मक और सांस्कृतिक गुणों का विकास करने के लिए भी प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, विश्वविद्यालय संस्कारों के संचार का केंद्र रहा है और हमारा प्रयास है कि हम इस परंपरा को सशक्त बनाए रखें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डीन, स्टूडेंट्स वेलफेयर (डी.एस.डब्ल्यू.) प्रोफेसर रफी उद्दीन ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि सी.ई.सी. की यह पहल वर्तमान समय की आवश्यकता को देखते हुए अत्यंत सराहनीय है। युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए ऐसी कार्यशालाएं बहुत उपयोगी हैं। यदि शिक्षकों और विभागों की ओर से इस तरह के प्रयास निरंतर होते रहें, तो विश्वविद्यालय में एक सकारात्मक और स्वस्थ शैक्षणिक वातावरण अवश्य निर्मित होगा। उन्होंने छात्रों से आह्वान किया कि वे विश्वविद्यालय की सभी सुविधाओं का सदुपयोग करें और अपने भीतर संतोष एवं प्रसन्नता का भाव विकसित करें।
कार्यक्रम का संचाल जोया खान द्वारा किया गया तथा अंत में जूबिया मसूद ने सभी अतिथियों, वक्ताओं और उपस्थित लोगों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर क्लब के कई सदस्यों सहित हसान, अजीम सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
11/08/2025 01:07 PM

















