Aligarh
अलीगढ़।
प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद खान ने अजान के गुजरात प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोर्ट में इंसाफ मौजूद:
अलीगढ़।
गुजरात हाई कोर्ट में अजान के निर्णय पर के पूर्व विभागाध्यक्ष ने दी प्रतिक्रिया
प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद खान ने अजान के गुजरात प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोर्ट में इंसाफ मौजूद है।
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प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद इस्लामिक स्कॉलर एवं सामाजिक व तालीम के मारूफ शक्सियत हैं
प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद ने कहा कि अजान के मुतालिक जो गुजरात हाई कोर्ट में निर्णय हुआ है उसमे कोर्ट ने ये मानने से इंकार कर दिया है की अजान से ध्वनि प्रदूषण या ईको प्रॉब्लम होती है उसके अलावा कोर्ट ने पूछा कि आरती भजन कीर्तन और गाने जो बजाए जाते हैं उससे भी तो कुछ होता है उसमे भी तो लिमिट नहीं है जो सुबह शाम होता है, जो बजरंग दल के लोग पक्षपात करके यह सब कर रहे हैं उसमे गुजरात हाई कोर्ट ने अच्छा फैसला दिया है और कॉन्स्टिट्यूशन के मुताबिक दिया है और कोर्ट ने यूपी सरकार गुजरात सरकार और सेंट्रल में मोदी सरकार के दबाव में आने से बजाए कॉन्स्टिट्यूशन के मुताल्लिक फैसला दिया है,
प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद ने कहा कि अदालतों को कॉन्स्टिट्यूशन के मुताबिक ही फैसला करना चाहिए, और कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए एक आवाज खास लिमिट के हिसाब से ही होनी चाहिए और मस्जिद वालों को भी ख्याल रखना चाहिए और मंदिर वालों को भी ख्याल रखना चाहिए अपने पड़ोसियों की तकलीफ देने से बचना चाहिए, सिर्फ मजहब की बुनियाद पर किसी से नफरत या डिस्क्रिमिनेशन नहीं होना चाहिए उन्होंने कहा में समझता हूं कि ये हाई कोर्ट के कहने का मतलब है, और उन्होंने कॉन्स्टिट्यूशन के एतबार से फैसला किया है और किसी भी दबाव में आने से इनकार किया है चाहे राज्य सरकारी हो या फिर केंद्र सरकार।
आपको बता दें कि गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया, जिसमें मस्जिदों से अजान या इस्लामी प्रार्थना के प्रसारण के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध पी मायी की बेंच ने याचिका को पूरी तरह गलत करार दिया। दरअसल बजरंग दल के नेता शक्तिसिंह जाला ने हाईकोर्ट में जनहित याचिक दाखिल की थी। इसमें कहा गया कि लाउडस्पीकर के जरिए अजान देने से ध्वनि प्रदूषण होता है। इससे आम जनता खासकर बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और अन्य तरह की असुविधाएं होती हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से मंदिर के अनुष्ठानों के दौरान घंटियों और घंटियों की आवाज के बारे में भी सवाल किया। बेंच ने पूछा, आपके मंदिर में सुबह की आरती भी ढोल-नगाड़ों और संगीत के साथ तड़के 3 बजे ही शुरू हो जाती है। उस समय बहुत से लोग सो रहे होते हैं। क्या इससे शोर नहीं होता? क्या आप दावा कर सकते हैं कि घंटे और घड़ियाल की ध्वनि केवल मंदिर परिसर तक ही सीमित है? कीर्तन-भजन, आठ घंटे चलने वाले अष्टयाम या 24 घंटे चलने वाले नवाह के लाउडस्पीकर के जरिए प्रसारण को ध्वनि प्रदूषण का कारण मान लिया जाए, तब आप क्या कहेंगे?
कोर्ट ने क्या पूछा कि
ध्वनि प्रदूषण को मापने के लिए वैज्ञानिक तरीकों के अस्तित्व पर प्रकाश डालते हुए यह नोट किया गया कि जनहित याचिका में इस दावे को साबित करने के लिए ठोस डेटा या अध्ययन-निष्कर्ष प्रस्तुत करने की जरूरत है, ताकि प्रमाण रहे कि 10 मिनट की अजान से ध्वनि प्रदूषण हो सकता है।
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बाइट: प्रो० मुफ्ती जाहिद
पूर्व विभागाध्यक्ष सुन्नी थियोलॉजी एएमयू
संवादाता फैजान खान
11/29/2023 05:57 PM