भगवान महावीर के सूत्र नर से नारायण बनाते हैं।: भगवान महावीर के सूत्र नर से नारायण बनाते हैं।
हर तरफ चीत्कार चिल्लाहट करुण पुकार मिटती दुनिया की तस्वीर इंसान डरा डरा सा जी रहा है आखिर क्यों? भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत दिए जिन्हें पंचशील सिद्धांतों के नाम से जाना जाता है लेकिन आज मानव उन सिद्धांतों को धीरे धीरे भूलता जा रहा है जिनके कारण उसकी यह दशा बनी हुई है। संपूर्ण विश्व में जैन धर्म के सिद्धांतों को माना जाता है भले ही दुनिया तीर्थंकरों को ना माने। जैन धर्म में 24 महापुरुष होते हैं जिन्हें तीर्थंकर कहा जाता है, इनमें प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव तथा अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर थे। आज दुनिया के सामने प्रसन्न रख दिया जाए कि जैन धर्म के संस्थापक कौन थे? तो सभी का एक ही जवाब होगा भगवान महावीर, यदि आज हम जैन धर्म के अनुयायियों से पूछे कि जैन धर्म के संस्थापक कौन थे तो इतना कह सकते हैं भगवान आदिनाथ थे जो कि सरासर गलत है क्योंकि जैन धर्म के संस्थापक कोई है ही नहीं, जैन धर्म अनादि निधन धर्म है इसका कोई सिरजेता नही है किंतु प्रेरता इस युग के भगवान आदिनाथ है जो हमारे प्रथम तीर्थंकर है जैन धर्म प्रकृति का धर्म है और प्रकृति को किसी ने बनाया नहीं है वह तो अनादि काल से है और अनंत काल तक रहेगी।
अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के शासनकाल में आज हम विराजित हैं उनका शासन काल अनवरत चल रहा है और पंचम काल के अंत तक चलता रहेगा। सभी तीर्थंकरों ने 5 सूत्र हर मानव को दिए उन्हीं की परंपरा में भगवान महावीर ने ये 5 सूत्रों का उपदेश मानव कल्याण के लिए दिया। क्या भगवान महावीर से पहले ये 5 सूत्र नहीं थे ?तो कहा जाएगा कि पहले भी थे क्योंकि ऐसा कोई भी राज्य नहीं है, कोई भी देश नहीं है, कोई भी शासक नहीं है जिस राज्य में देश में जिसके शासन में हिंसा को पाप नहीं माना जाता हो, हिंसक को दंड नहीं दिया जाता हो। झूठ बोलना हर शासन के काल में पाप समझा जाता है जिसका दंड भी दिया जाता है। चोरी करना पाप है जिसकी सजा हर देश में, हर राज्य में, हर काल में मिलती थी, मिलती है और मिलती रहेगी। अब्रह्मा की सजा व जरूरत से रखना ज्यादा वस्तुएं रखना पाप समझा जाता है उसकी सजा मिलती है ,मिलती थी, मिलती रहेगी। भगवान महावीर अथवा जैन तीर्थंकरों के अथवा जैन धर्म के पांच सिद्धांत प्रमुख है जिनके कारण व्यक्ति हर अनर्थ से बच जाता है, हर पाप से बच जाता है। अहिंसा, सत्य, अचोर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह ये पांच सिद्धांत प्राणी मात्र का कल्याण करने वाले हैं। नर से नारायण, पत्थर से परमात्मा, कंकर से शंकर, इन 5 सद्धांतों के माध्यम से बना जा सकता है।
भगवान महावीर या जैन धर्म कहता है अधिक परिग्रह मत रखो यह पाप है अथवा सभी पापों की जड़ है सारे अनर्थ इसी से होते हैं। परिग्रह ही कारण है एक विस्तारवादी योजना ही है। अगर जैन धर्म के सिद्धांत को सारी दुनिया अपने जीवन में उतार ले और जरूरत से ज्यादा नहीं रखेंगे तो फिर मिसाइल युद्ध रोकने में देर नहीं है, परमाणु युद्ध फिर हो ही नहीं सकता यदि जैन धर्म के सिद्धांत अहिंसा को ही अपना लिया जाए तो एक दूसरे पर हथियारों का प्रयोग हो ही नहीं सकता। कहा भी है-
प्यासी है जमीन उसी वीर चाहिए,
मीरा, राम, तुलसी कबीर चाहिए
बारूद के ढेर पर बैठा है जहां
आज उसे जीता महावीर चाहिए ।
अग्नि से अग्नि आज तक नहीं बुझी, न आगे बुझेगी, हिंसा से हिंसा आज तक ना मिटी है न मिटेगी। अग्नि बुझाने के लिए जल की आवश्यकता होती है तो हिंसा को मिटाने के लिए दया, प्रेम, करुणा, अहिंसा की आवश्यकता है और वह महावीर के अंदर पाये जा सकते है अतः हर दिन में महावीर जैसे विचार आना आवश्यक है। इसलिए इन पांच सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारें, एटम बमों से किसी का कल्याण नहीं हो सकता मात्र विनाश हो सकता है, विकास नहीं। कल्याणकारी भगवान महावीर की वाणी "स्वयं जियो दूसरे को जीने दो" यही जैन धर्म का संदेश है।
.......मुनि विज्ञ सागर महाराज
04/11/2022 05:13 PM