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पीरियॉडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे (पीएलएफ़एस) के हिसाब से भारत में रोज़गार की तस्वीर:
भारत में रोज़गार की तस्वीर
भारत में रोज़गार के अवसर को लेकर तस्वीर मिलीजुली दिखती है. पीरियॉडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे (पीएलएफ़एस) में बरोज़गारी को लेकर जो आंकड़े दिए गए हैं वो बेरोज़गारी में कमी दिखाते हैं. जहां साल 2017-18 में बोरोज़गारी दर 6 फ़ीसदी थी, वहीं 2021-22 में 4 फ़ीसदी थी.
डेवेलपमेन्ट इकोनॉमिस्ट और बाथ यूनिवर्सिटी में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर संतोष महरोत्रा कहते हैं कि अवैतनिक काम को भी सरकारी डेटा में शामिल करने की वजह से ऐसा दिखता है.
वो कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि नौकरियां नहीं आ रही हैं. मामला ये है कि एक तरफ औपचारिक सेक्टर में नौकरियां बढ़ नहीं रहीं तो दूसरी तरफ नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है."
अज़ीम प्रेमजी युनिवर्सिटी की स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार बेरोज़गारी कम तो हो रही है लेकिन ये अभी भी काफी ज़्यादा है.
इस रिपोर्ट के अनुसार 1980 के दशक में आए ठहराव के बाद 2004 में अर्थव्यवस्था में रेगुलर वेतन या वेतनभोगी कामग़ारों की हिस्सेदारी बढ़ने लगी. 2004 में ये पुरुषों के लिए 18 से 25 फ़ीसदी तक हुई और महिलाओं में 10 से 25 फ़ीसदी तक.
लेकिन 2019 के बाद से, "विकास मंदी और महामारी" के कारण रेलुलर वेतन वाली नौकरियों में कमी आई है.
इस रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के बाद देश के 15 फ़ीसदी से अधिक ग्रैजुएट और 25 साल से कम उम्र के 42 फ़ीसदी ग्रैजुएट्स के पास नौकरियां नहीं हैं.
अज़ीम प्रेमजी युनिवर्सिटी में लेबर इकोनॉमिस्ट रोज़ा अब्राहम कहती हैं, "ये वो तबका है जिसे अधिक कमाई चाहिए और ये छोटे-मोटे अस्थायी काम करने में दिलचस्पी नहीं रखता. यही वो समूह है अधिक कमाई और नौकरी में स्थायित्व की उम्मीद में जान का जोखिम लेने के लिए (इसराइल जाने के लिए) तैयार है.
इन युवाओं में से एक हैं उत्तर प्रदेश के अंकित उपाध्याय. वो कहते हैं कि उन्होंने एक एजेंट को पैसे दिए, अपना वीज़ा बनवाया और कुवैत जाकर स्टील फिक्सर के तौर पर आठ साल काम किया.
वो कहते हैं क महामारी ने उनकी नौकरी छीन ली. वो कहते हैं, "मुझे किसी बात की डर नहीं है. मैं इसराइल में काम करने के लिए तैयार हूं. वहां मौजूद ख़तरों से मुझे फर्क नहीं पड़ता. देश के भीतर भी नौकरियों में सुरक्षा नहीं है."
सौ० बीबीसी न्यूज
01/27/2024 04:09 PM