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सच्चाई है कि हिंदी एक नक़ली भाषा है, आप लोग सच्चाई से क्यों भागते हैं ?: मार्कण्डेय काट्जू।
नई दिल्ली। मार्कण्डेय काट्जू भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष एवं भारत के उच्चतम न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश हैं उन्होंने आज हिन्दी दिवस के मौके पर बयान दिया कि हिन्दी नकली भाषा है, उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि जनता की भाषा हिंदुस्तानी या खड़ीबोली है I हिंदी एक कृत्रिम भाषा है जिसको बनाने का मक़सद था हिन्दू मुस्लिम को लड़वाना, यह प्रचार करके कि हिंदी हिन्दुओं की और उर्दू मुसलमानों की भाषा है, जबकि १९४७ तक उर्दू सभी शिक्षित लोगों की भाषा थी I
फूट डालो और राज करो नीति 1857 की बगावत के बाद अंग्रेजों ने शुरू की. अंग्रेज़ों के मुख्या पिट्ठू भाषा के मामले में भारतेंदु हरिश्चंद्र थे I हिंदुस्तानी ( या खड़ीबोली ) में कहेंगे उधर देखिये I हिंदी में कहेंगे उधर अवलोकन कीजिये I आम आदमी कभी नहीं कहेगा उधर अवलोकन कीजिये I
और कहा कि जब मैं इलाहबाद उच्च न्यायलय में न्यायाधीश था तो एक वकील साहेब जो हमेशा हिंदी में बहस करते थे ने मेरे सामने एक याचिका दायर की जिसका शीर्षक था प्रतिभू आवेदन पत्र I मैंने वकील साहेब से पूंछा कि यह प्रतिभू आवेदन पत्र क्या होता है ? उन्होंने जवाब दिया ज़मानत की दरखास्त I मैंने कहा ज़मानत या बेल कहोगे तो सब समझ जाएंगे मगर प्रतिभू कोई नहीं समझता I हकीकत है कि क्योंकि ज़मानत शब्द फ़ारसी भाषा का है इसलिए उससे नफरत है I इसी तरह हज़ारों शब्द जो अरबी या फ़ारसी भाषा के थे वह हिंदुस्तानी में आ गए, और उन्हें आम आदमी भी इस्तेमाल करने लगा I मगर कट्टरवादी लोग १९४७ के बाद उन्हें चुन चुन के निकाल कर उनके जगह संस्कृत के शब्द रखने लगा जिन्हे आम आदमी नहीं जानता था I
यह ग़लत धारणा है कि कोई भाषा विदेशी शब्दों को लेने से कमज़ोर हो जाती है I वास्तव में वह ऐसा करने से और शक्तिशाली हो जाती है, जैसे अंग्रेजी भाषा जिसने दुनिया के तमाम भाषाओँ के शब्द अपनाये, जिससे वह और शक्तिशाली बन गयी।
01/10/2023 07:19 PM