Aligarh
लंदन से MBA करने वाले इस शख्स ने अपने दम पर खड़ी कर दी कंट्री क्राफ्ट कंपनी: महज रु 50 हजार में कंपनी खोली, आज लाखों का हुआ टर्नओवर.
अलीगढ: आज के इस दौर में अपने व्यवसाय को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती से कम नहीं है अलीगढ़ जैसे छोटे शहर से निकल यूके में पढ़ाई करना और अपने शहर में आकर युवाओं को रोजगार देना भी कम चुनौती भरा नहीं है हर युवा का सपना होता है की उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्छी नौकरी मिले गाड़ी हो अपना घर हो लेकिन उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर अलीगढ के एक युवा ने भी कई सपने सजाओ थे लेकिन कुछ अलग उसका सपना अच्छी नौकरी करना नहीं बल्कि दुसरो को रोज़गार देना था.
अदनान अली खान ने 14 जनवरी 2017 में यू०के (लंदन) से अपनी पढ़ाई शुरू की जिसमे उन्होंने पढ़ाई के साथ ही लंदन में ही ज़ारा के शोरूम पर पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया जिससे विदेश में घर वालो पर पढ़ाई का भारी भरकम खर्चा का बोझ भी न पड़े और पढ़ाई पूरी हो सके अदनान की सोच थी की विदेश में पढ़ाई का कम से कम खर्चा परिवार पर पड़े. अगस्त 2018 में अपनी एम् बी ए की पढ़ाई पूरी करने के बाद अदनान अलीगढ वापस आ गए अब चुनौती थी की माता पिता को कैसे साझाया जाये अपना कारोबार शुरू करे हलाकि पिता का हमेश साथ रहा अदनान की अम्मी चाहती थी वो लंदन से आकर अच्छी नौकरी करे लेकिन अदनान मन नहीं था पिता से गहन सोच विचार के बाद निर्णय लिया की अपना कोई कारोबार शुरू किया जाये सामने चुनौतियां भी बहुत थी परिवार में इससे पहले किसी ने अपना कारोबार नहीं किया था मन में एक डर भी था की पिता की जमा पूंझी लगाना बड़ी चुनौती है लेकिन दोस्तों का सपोर्ट और परिवार का साथ ने काफी हौसला दिए. सितम्बर 2018 में अदनान अली खान ने कंट्री क्राफ्ट (COUNTRY KRAFT) नाम से अपनी कंपनी शुरू की कंपनी को चलाना लोगो को जोड़ना भी काम चुनौती भरा नहीं था कंट्री क्राफ्ट शुरू करने के साथ लोगो तक अपनी पहुँच बनाना और इस दौर में अपनी पहचान बनाना. अदनान का कहना है कंपनी शुरू की तो मैंने और मेरे दोस्तों ने रात में अलग अलग शहरों में जाकर हम लोग खुद दीवारों पर कंपनी के प्रचार प्रसार के लिए पोस्टर चस्पा करते थे काम पैसे के आभाव में ज़्यादा से ज़्यादा काम खुद ही पूरे करने होते थे.
क्या है कंट्री क्राफ्ट की सोच और क्या करती है कंपनी
ठठेरों की विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी इस कला को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2014 में यूनेस्को ने कल्चर हेरीटेज सूची में शामिल किया था। ये देश का पहला और इकलौता क्राफ्ट है, जिसे यूनेस्को की लिस्ट में शामिल किया गया था। इस कला को विश्व स्तर पर पहचान मिलने के बाद जब सरकार का इस तरफ ध्यान नहीं गया तब इसे संजोने और पुनर्जीवित रखने के लिये अम्मृत्सर के एक छोटा सा गांव जंडिला गुरु जहाँ से ये ठठेरा कला शुरू हुई.अमृतसर जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर जांडियाला गुरु नाम का एक प्रसिद्ध कस्बा है जो देश में ठठेरों द्वारा हाथ से बने तांबे और पीतल के बर्तनो के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ हाथ से बर्तन बनाने वाले कारीगर सदियों से पीतल और तांबे के बर्तन बनाते आये हैं। बदलते परिवेश के साथ जैसे-जैसे इन बर्तनों की मांग कम होने लगी वैसे-वैसे ठठेरा समुदाय इस कला से दूर होता गया। जो संख्या पहले 500 थी अब वो गिनी चुनी ही बची है। कस्टमर का आभाव और काम आमदनी इनकी काम काम होने की बाई वजह बनी है आज के दौर में ठठेरा कला कम होने की बड़ी वजह आधुनिक दौर में मशीनीकरण है जिसके कारण काम समय में बड़ा आर्डर पूरा करना आसान है.
मुरादाबाद है इस का बड़ा केंद्र
आधुनिक दौर में हाथ से बने बर्तनों को भी अब मशीनों का सहारा लेना पड़ रहा जैसे जैसे समय बीता जा रहा है मुरादाबाद के कारीगर अब मशीनें पर ज़्यादा निर्भर होते जा रहे है जिससे बड़े ऑर्डर पूरे करने में समय की बचत और जल्दी काम पूरा होता है.मुरादाबाद भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक नगर है जो कि पीतल हस्तशिल्प के निर्यात के लिए प्रसिद्ध है। रामगंगा नदी के तट पर स्थित मुरादाबाद पीतल पर की गई हस्तशिल्प के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसका निर्यात केवल भारत में ही नहीं अपितु अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और मध्य पूर्व एशिया आदि देशों में भी किया जाता है।
साल 2018 में शुरू हुआ कारोबार
अदनान ने कंट्री क्राफ्ट की साल 2018 में महज़ पचास हज़ार रुपये से की थी अपनी मेहनत और छोटे कारीगरों की दुआयों से आज कंपनी का सालाना टर्नओवर चालीस से पचास लाख का है. अदनान बताते है की की पढ़ाई ख़तम होने साथ में मैंने विदेश में जॉब करना शुरू किया वहाँ के लोगो के द्वारा भारतीय कला के प्रति प्यार देखा और सोचा क्यों न अपने देश की कला को विदेश तक पहुँचाया जाये और आने वाले समय में ठठेरा कला को घर घर पहुँचाया जाये बस फिर क्या था वही से नौकरी छोड़ी अदनान को दोस्तों का भी साथ मिला और कंपनी की शुरू कर दी. पुणे मुंबई अमृतसर जयपुर आगरा अलीगढ दिल्ली लुधियाना गोवा और बिहार जैसे बड़े शहरो में कंपनी को अच्छे ग्राहक मिले है इसके साथ ही ऑनलाइन पोर्टल पर भी कंपनी के आइटम्स सेल किये जा रहे है सेल का कुछ हिस्सा गरीब कारीगरों के वेलफेयर के लिए इस्तेमाल किया जाता है. अदनान खान कहते है की कंपनी का उदेशय पैसा कामना नहीं है आज के इस दौर युवाओ और बेरोज़गारो को रोज़गार देना है और लोकल फॉर वोकल बढ़ावा देना है जैसे की पीएम मोदी ने भी कहा है.
कारोबार करने के लिए क्या होती है योग्यता
अदनान बताते है भारत आने के बाद सबसे पहले मेने मुरादाबाद में कुछ दिन समय बिताया जिससे इस कारोबार की बारीकियां समझ में आने लगे छोटे छोटे कारीगरों के साथ बैठना उनके साथ काम करना में ही छोटी छोटी जमकारिया मिलने लगी जिसके बाद अलीगढ आकर अपना ऑफिस खोला और काम की शुवत की हलाकि इस कारोबार में कई रिस्क भी थे सबसे बड़ा ग्राहकों का चयन और मार्किट का चयन बड़ी ज़िम्मेदारी होती है अदनान इसके लिए अपने दोस्तों को चुना जो मार्किट से जाकर ऑर्डर ले और कंपनी के बारे में बताये. मुरादाबाद के जानकर बताते है इस कारोबार को शुरू करने के लिए एक से दो करोड़ की राशि की ज़रुरत पड़ सकती है लेकिन अदनान ने ने कम पूंजी में ही अपने काम को शुरू कर दिए. अदनान मार्किट के बारे में बताते है की कई बार ऐसा होता है ही आप के पास आर्डर नहीं मिलते इसकी बड़ी वजह है की हाथ से बने बर्तन मेहेंगे होते है जिसे हर कोई अफोर्ड नहीं कर सकता लेकिन होटल और रेस्टोरेंट में आजकल के ट्रेंड में चलने वाला बर्तन यही है तो अगर आप के पास कुछ समय तक आर्डर नहीं आ रहे तो धैर्र्य रखे अपने काम को आगे बढ़ाते रहे!
10/17/2020 04:58 PM