AMBAH-MADHYA PRADESH
अंबाह।श्रीमद राजचन्द्र, जन्म रायचन्दभाई रावजीभाई मेहता, एक जैन कवि, दार्शनिक और विद्वान थे। उन्हें मुख्यतः उनके जैनधर्म शिक्षण और महात्मा गांधी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में जाना जाता है।महात्मा गांधी जी ने अपनी आत्मकथा "सत्य के साथ प्रयोग" में इनका विभिन्न स्थानों पर उल्लेख किया हैं।उन्होंने लिखा कि " मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाले आधुनिक पुरुष तीन हैं: रायचंद्र भाई अपने सजीव संपर्क से, टॉलस्टॉय 'वैकुंठ तेरे हृदय में है' नामक अपनी पुस्तक से और रस्किन 'अन्टू दिस लास्ट- सर्वोदय' नामक पुस्तक से
महात्मा गांधी के गुरु श्रीमद राजचंद: महात्मा गांधी के गुरु श्रीमद राजचंद
अंबाह।श्रीमद राजचन्द्र, जन्म रायचन्दभाई रावजीभाई मेहता, एक जैन कवि, दार्शनिक और विद्वान थे। उन्हें मुख्यतः उनके जैनधर्म शिक्षण और महात्मा गांधी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में जाना जाता है।महात्मा गांधी जी ने अपनी आत्मकथा "सत्य के साथ प्रयोग" में इनका विभिन्न स्थानों पर उल्लेख किया हैं।उन्होंने लिखा कि " मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाले आधुनिक पुरुष तीन हैं: रायचंद्र भाई अपने सजीव संपर्क से, टॉलस्टॉय 'वैकुंठ तेरे हृदय में है' नामक अपनी पुस्तक से और रस्किन 'अन्टू दिस लास्ट- सर्वोदय' नामक पुस्तक से
कभी गुजराती में 'महात्मा नो महात्मा' कहा जाता था, यानी गांधी के महात्मा।इस संत को आज भारत के लोग एक तरह से भूल चुके हैं।श्रीमद राजचंद्र को कई लोग जैनों का 25वाँ तीर्थंकर कहते थे, वर्धमान महावीर जैनों के 24वें तीर्थंकर थे।गांधी उनसे अध्यात्मिक विषयों पर लगातार विचार-विमर्श और पत्राचार किया करते रहते थे और उनसे बहुत प्रभावित थे।गांधी के जीवन की दो प्रमुख बातों- अहिंसा और ब्रह्मचर्य में श्रीमद राजचंद्र का बहुत बड़ा योगदान था।श्रीमद राजचंद्र उम्र में गांधी से दो ही वर्ष बड़े थे और गांधी की ही तरह गुजराती भाषी थे।वे मोरबी के निकट एक गाँव में एक जौहरी परिवार में नवंबर 1867 में पैदा हुए थे और बचपन से ही धार्मिक प्रवृति के थे।उन्होंने परिवार के दबाव में कुछ समय तक मोतियों का कारोबार किया, उनके रिश्तेदार चाहते थे कि वे मुंबई चले जाएँ लेकिन वे ऐसा करने को तैयार नहीं हुए।उनकी शादी 20 वर्ष की उम्र में ज़बकबेन से हुई, जो उस दौर में काफ़ी देर से हुई शादी थी, उनके चार बच्चे भी हुए लेकिन श्रीमद राजचंद्र का पूरा ध्यान आत्मा-परमात्मा के रहस्यों को समझने में ही लगा रहा।गांधी ने लिखा है कि उनके अध्यात्मिक जीवन पर जिन लोगों ने सबसे अधिक असर डाला है उनमें श्रीमद राजचंद्र अग्रणी थे जिन्हें गांधी प्यार से रायचंद भाई कहते थे।महात्मा गांधी अपने युवावस्था के दिनों में अपने अफ्रीका प्रवास के दौरान गांधी सभी अंगरेज़ी जानने वालों को टॉल्सटॉय की किताबें और गुजराती भाइयों को रायचंद भाई की 'आत्म सिद्धि' पढ़ने की सलाह देते थे।श्रीमद राजचंद्र के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अपने पिछले कई जन्मों की बातें याद थीं और उनकी स्मरण शक्ति बहुत तेज़ थी।लेकिन वे परंपरागत जैन धर्म के मुनि के तौर पर नहीं बल्कि आत्म-साक्षात्कार का ज्ञान देने वाले संत के रूप में जाने जाते हैं।जन्म के बाद उनका नाम लक्ष्मीनंदन रखा गया था जिसे चार साल की उम्र में बदलकर उनके पिता ने रायचंद कर दिया, बाद में वे खुद को राजचंद्र कहने लगे जो रायचंद का संस्कृत रूप है।गांधी और श्रीमद राजचंद्र की मुलाक़ात 1891 में हुई थी और वे उनके शास्त्रों के ज्ञान और गहरी समझ से बहुत प्रभावित हुए थे, जिसका ज़िक्र उनकी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में भी मिलता है।कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी शोधपरक किताब 'गांधी एज़ डिसाइपल एंड मेंटोर' में थॉमस वेबर ने लिखा है, "गांधी के जीवन में एक ऐसा दौर आया कि वे ईसाई और इस्लाम मत के जानकारों के करीब आए, उनके मन में धर्म परिर्वतन का ख़याल भी आया लेकिन उन्होंने सोचा कि पहले अपने धर्म को ठीक से समझने के बाद ही वे ऐसा कोई क़दम उठाएँगे, इस दौर में उनकी अध्यात्मिक जिज्ञासों के उत्तर श्रीमद राजचंद्र दिया करते थे।गांधी जब अध्यात्मिक और वैचारिक उथल-पुथल से गुज़र रहे थे तब श्रीमद राजचंद्र के शब्दों से उन्हें शांति मिली।गांधी ने लिखा है, "उन्होंने मुझे समझाया कि मैं जिस तरह के धार्मिक विचार अपना सकता हूँ वो हिंदू धर्म के भीतर मौजूद हैं, आप समझ सकते हैं कि मेरे मन में उनके लिए कितनी श्रद्धा है।गांधी ने अपने मित्र हेनरी पॉलक को राजचंद्र के बारे में लिखा था, "मैं उन्हें अपने समय का सर्वश्रेष्ठ भारतीय मानता हूँ।"वेबर ने अपनी किताब में लिखा है कि राजचंद्र ने ही गांधी को समझाया था कि वे विवाहित रहकर भी ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं।वेबर अपनी किताब में एक पत्राचार का उल्लेख भी करते हैं जिसमें राजचंद्र ने गांधी को दूध पीना छोड़ने की सलाह दी थी।उनका कहना था, "पशु का दूध पीकर पाशविक प्रवृत्तियाँ समाप्त नहीं हो सकतीं।20 अक्तूबर, 1894 को गांधी ने अपने प्रिय 'रायचंद भाई' को एक लंबा पत्र लिखा, जिसमें अध्यात्मिक जिज्ञासा से भरे 27 सवाल थे, जैसे, आत्मा क्या है? क्या कृष्ण भक्ति से मोक्ष मिल सकता है? ईसायत के बारे में आपकी राय क्या है? वगैरह..1901 में 33 वर्ष की आयु में श्रीमद राजचंद्र का निधन राजकोट में हुआ और गांधी ने इसी वर्ष से ब्रह्मचर्य का व्रत लिया।
मुख थी ज्ञान कथे अने
अंतर छुट्यो न मोह
ते पामर प्राणी दशा
करे ज्ञानीनो द्रोह...
श्रीमद राजचन्द्र जी 🙏🏼
04/10/2022 04:30 PM