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अवैध हिरासत पर देना होगा 25000 रूपए मुआवजा: हाइकोर्ट मुआवजे की राशि दोषी अफसरों से वसूली जाए: वाराणसी के एक मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने सुनाया फैसला।
प्रयागराज। इलाहाबाद Allahabad हाईकोर्ट ने नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर एक अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहां है कि किसी को भी अवैध हिरासत में रखना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है। राज्य सरकार को अवैध रूप से हिरासत में लिए गए नागरिकों को 25000 रूपए मुआवजा देना देना होगा। इस प्रावधान को सख्ती से लागू करने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के निर्देश भी हाई कोर्ट ने दिए हैं।
ये है पूरा मामला
दरअसल याचिकाकर्ताओं और उनके परिवार के सदस्यों के बीच पैतृक भूमि के बंटवारे को लेकर विवाद हो गया था। इस विवाद के बाद वाराणसी पुलिस ने दोनों पक्षों के सदस्यों का शांति भंग की आशंका के तहत चालान कर दिया था। पुलिस की ओर से सीआरपीसी के तहत उपमंडल मजिस्ट्रेट को एक चालानी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। चालानी रिपोर्ट मिलने पर अनुमंडल पदाधिकारी ने मामला दर्ज कर याचिकाकर्ता को मुचलका जमा करने तक हिरासत में रखने का निर्देश दिया. याचिकाकर्ताओं ने व्यक्तिगत बांड और अन्य कागजात जमा किए लेकिन कथित तौर पर, उन्हें रिहा नहीं किया और सत्यापन के बहाने फाइल रखने का निर्देश दिया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं को रिहा किया गए। याचिकाकर्ता ने इस बात पर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अवैध हिरासत में रखने का आरोप लगाते हुए मुआवजे की मांग की। इस याचिका को सुनने के बाद ( Allahabad High Court ) न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की बेंच ने कहा कि व्यक्तिगत बांड/जमानत बांड और अन्य कागजात जमा करने के बाद भी याचिकाकर्ताओं को रिहा न करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का स्पष्ट उल्लंघन है।
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि एक सामान्य नागरिक या आम आदमी शायद ही राज्य की ताकत या उसके उपकरणों से मेल खाने के लिए सुसज्जित हो। सरकार के सेवक भी जनता के सेवक होते हैं और उनकी शक्ति का उपयोग हमेशा उनकी सेवा के कर्तव्य के अधीन होना चाहिए। एक सार्वजनिक पदाधिकारी यदि दुर्भावनापूर्ण या दमनकारी कार्य करता है और सत्ता के प्रयोग से उत्पीड़न और पीड़ा होती है तो यह शक्ति का प्रयोग नहीं है बल्कि इसका दुरुपयोग है और कोई कानून इसके खिलाफ सुरक्षा प्रदान नहीं करता है, जो इसके लिए जिम्मेदार है उसे इसे भुगतना होगा। लेकिन जब यह मनमाना या मनमौजी व्यवहार के कारण उत्पन्न होता है तो यह अपना व्यक्तिगत चरित्र खो देता है और सामाजिक महत्व ग्रहण कर लेता है।
सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा एक आम आदमी का उत्पीड़न सामाजिक रूप से घृणित और कानूनी रूप से अस्वीकार्य है। यह उन्हें व्यक्तिगत रूप से नुकसान पहुंचा सकता है लेकिन समाज को लगी चोट कहीं अधिक गंभीर है। लाचारी की भावना से ज्यादा हानिकारक कुछ भी नहीं है। एक आम नागरिक शिकायत करने और लड़ने के बजाय कार्यालयों में अवांछित कामकाज के दबाव में खड़ा होने के बजाय उसके सामने झुक जाता है। इसलिए, सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न के लिए मुआवजे का पुरस्कार न केवल व्यक्ति को मुआवजा देता है, उसे व्यक्तिगत रूप से संतुष्ट करता है बल्कि सामाजिक बुराई को ठीक करने में मदद करता है। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार अपने नीतिगत निर्णय दिनांक 23 मार्च 2021 के पैरा 12 का प्रचार प्रसार करेगी ताकि जनता को पता चल सके।
06/12/2021 08:17 PM