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कोरोना,बेरोजगारी,पेट्रोल के दामों में वृद्धि के बीच मोदी सरकार ने 7 साल पूरे किए: 7 साल में 70 साल की मेहनत बर्बाद…पुण्य प्रसून बाजपेयी ने मोदी सरकार पर कसा तंज, तो मिलने लगे लोगों से ऐसे रिएक्शन।
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को सत्ता में आए सात साल हो गए. 2014 के आम चुनाव में उनके विकास और अच्छे दिन जैसे नारों ने आम वोटरों को काफी प्रभावित किया था।
लेकिन पिछले साल से कोरोना वायरस के फैलने के बाद आर्थिक चुनौतियों के बीच उन्हें आलोचना का सामना भी करना पड़ा है. हालांकि इस महामारी ने भारत समेत दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को तबाह किया है।
लेकिन आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि किसी भी सरकार की आर्थिक नीतियों की सफलता का पता लगाने के लिए सात साल एक लंबा वक़्त होता है. बीबीसी संवाददाता ज़ूबैर अहमद ने विशेष रिपोर्ट में ये पता लगाने की कोशिश की है कि इन सात सालों में प्रधानमंत्री ने विकास के वादे किस हद तक पूरे किए।
वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी ने हाल ही में एक पोस्ट शेयर किया जिसमें वह मोदी गवर्नमेंट पर तंज कसते नजर आ रहे हैं। पत्रकार का एक वीडियो सामने आया है जिसपर वह मोदी सरकार की खामियों को गिनवाते दिखते हैं। अपने ट्वीट में बाजपेयी कहते हैं- ‘सफ़र किया, प्रचार किया, बेरोज़गार किया, बैंक खोखला किया, सार्वजनिक उपक्रम बेचा। 200 योजनाओं का ऐलान किया, 7 साल में 70 साल की मेहनत बर्बाद।
पुण्य प्रसून बाजपेयी ने साथ ही अपना एक वीडियो भी शेयर किया जिसमें उन्होंने कहा- 7 बरस में 2 हजार 5 सौ 55 दिन होते हैं। इस दौरान देश के प्रधानमंत्री ने कितना सफर किया? कितनी बार चुनाव की रैलियों में नजर आए? दिल्ली से बाहर निकले, राज्यों में घूमते नजर आए। घरेलू उड़ानों की बात करें तो इन्होंने जितनी उड़ानें भरीं उतनी उड़ान इस देश के किसी प्रधानमंत्री ने कभी नहीं भरी थी। जितनी चुनावी रैलियों में ये शामिल हुए इससे पहले कोई प्रधानमंत्री ऐसे शामिल नहीं हुए। और तो और अंतर्राष्ट्रीय यात्राएं भी इतनी नहीं थीं।
बाजपेयी यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे कहा- 212 दिन विदेशी दौरों में, 470 दिन देश के भीतर अलग अलग राज्यों में घूमते हुए बिताए। 470 में से 202 दिन इन्होंने चुनावी रैलियों में गुजारे। इसे अन ऑफीशियल या नो ऑफीशियल यात्रा कही जाती है।
प्रसून बाजपेयी के इस पोस्ट को देख कर लोगों ने भी रिएक्ट करना शुरू कर दिया। मधुलिका नाम की एक महिला यूजर ने कहा- ‘अभी 3 साल बाक़ी हैं। और 30 साल पीछे जाना, जहां सब गुलाम थे।’
स्कूलों की फीस की मनमानी और अभिभावकों का मतभेद
चीन, इटली, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में कोरोना बुरी तरह फैल जाने के बाद भारत में भी कोरोनावायरस का संकट एक दम टूट पड़ा, भारत के प्रमुख शहर मुंबई में कोरोना मरीजों की सर्वाधिक संख्या रही उसके अलावा भारत के सभी राज्यों में भी कोरोनावायरस का प्रकोप रहा सरकार ने आनन-फानन में कोरोनावायरस की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लगाने का फैसला लिया और सभी बाजार स्कूल कारोबार सब कुछ बंद कर दिया क्या स्कूल और कॉलेज वालों ने फैसला किया कि छात्रों एवं बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन दी जाएगी एक निर्धारित समय थे करके ऑनलाइन क्लासेज चालू कर दी गई और स्कूल की फीस वसूलने में भी कोई भी कोताही नहीं बरती गई शुरुआती दौर में केंद्र व राज्य सरकारों ने स्कूल फीस को लेकर कई बयान जारी किए परंतु ऑनलाइन क्लासेस की तर्ज पर किसी भी स्कूल व कॉलेज में छात्रों एवं बच्चों की फीस माफ करने से साफ मना कर दिया जिसका रोज अभिभावकों में देखने को मेला अभिभावकों का कहना था कि लॉकडाउन के चलते काम एवं कारोबार बंद हो चुका है ऐसे में स्कूल वाले ऑनलाइन क्लासेज के नाम पर फीस वसूलने का काम गलत कर रहे हैं यह समस्या देशभर के सभी राज्यों में देखने को मिली कई अभिभावक इस फैसले के खिलाफ न्यायालय तक पहुंच गए।
पेट्रोल के भाव ने लगाया शतक:
मुंबई में पेट्रोल (Petrol price mumbai) ने शतक ठोक दिया है। देश की आर्थिक राजधानी (Economic Capital) में पेट्रोल की कीमत शनिवार को 100 रुपए के पार चली गयी। इस महीने 15वीं बार पेट्रोल की कीमत बढ़ायी गयी है। सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों की मूल्यवृद्धि संबंघी अधिसूचना के अनुसार पेट्रोल की कीमत में 26 पैसे प्रति लीटर और डीजल में 28 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गयी है। इस महीने 15वीं बार दोनों ईंधनों की कीमत बढ़ने के साथ देश में उनकी कीमत अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गयी है।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई शहरों में पेट्रोल की कीमत पहले ही 100 रुपये के पार जा चुकी है। शनिवार को मुंबई (mumbai petrol price ) में भी इसने यह आंकड़ा पार कर लिया। मुंबई में अब पेट्रोल की कीमत बढ़कर 100.19 रुपए प्रति लीटर, जबकि डीजल की कीमत 92.17 रुपये प्रति लीटर हो गयी है। राज्यों में वैट और फ्रेट शुल्कों जैसे स्थानीय करों के आधार पर ईंधन की कीमतों में अंतर रहता है।
दिल्ली के बाजार में पेट्रोल (Petrol) 93.94 रुपये जबकि डीजल (Diesel) 84.89 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया है. वहीं, मुबई में पेट्रोल की कीमत 100.19 रुपये और डीजल की कीमत 92.17 रुपये प्रति लीटर हो गई है. राजस्थान के श्रीगंगानगर में पेट्रोल की कीमत 105.15 और डीजल का भाव 97.99 रुपये प्रति लीटर है. बता दें कि शुक्रवार (28 मई) को तेल के रेट (Fuel Price) स्थिर रहे जबकि इससे एक दिन पहले सरकारी तेल कंपनियों (Government Oil Companies) ने पेट्रोल और डीजल (Petrol Diesel Price) की कीमतों में बदलाव किया था।
भारत में बेरोजगारी तीन दशक के टॉप पर, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट:
भारत में कोरोना संक्रमण के दौर में रोजगार में भारी कमी दर्ज की गई है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी ILO के मुताबिक 2020 के दौरान भारत की बेरोजगारी दर बढ़ कर 7.11 फीसदी पर पहुंच गई. यह पिछले तीन दशक का सर्वोच्च स्तर है. पिछले एक दशक में भारत की बेरोजगारी दर अपने पड़ोसी देशों में सबसे ज्यादा रही है. 2009 तक श्रीलंका में बेरोजगारी दर सबसे अधिक थी।
कोरोना संक्रमण की वजह से देश के ग्रामीण इलाकों के साथ ही शहरों में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है. 23 मई को खत्म हुए सप्ताह में शहरी बेरोजगारी दर 270 बेसिस प्वाइंट घट कर 17.41 फीसदी पर पहुंच गई. हालांकि यह आशंका जताई जा रही है कि अगर हालात काबू नहीं हुए तो शहरों में बेरोजगारी दर बढ़ कर पिछले साल के उच्चतम स्तर यानी 27.1 फीसदी पर पहुंच सकती है. अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर के जोर पकड़ने के बाद से अब तक शहरी बेरोजगारी दर डेढ़ गुना बढ़ गई है।
ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी ज्यादा
लॉकडाउन की वजह से रोजगार पैदा नहीं हो पा रहे हैं. एक जगह से दूसरी जगह जाने पर लगी पाबंदी ने शहरों में बेरोजगारी बढ़ाई है. कोविड की दूसरी लहर की शुरुआत के बाद संपूर्ण बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी हुई है. 23 मई, 2021 को खत्म हुए सप्ताह के दौरान यह 14.73 फीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया , जबकि चार अप्रैल को यह 8.16 फीसदी पर था. इस दौरान ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी 8.58 फीसदी से बढ़ कर 13.52 फीसदी पर पहुंच गई थी. हालांकि 16 मई को खत्म हुए सप्ताह में यह थोड़ी ज्यादा 14.34 फीसदी पर थी।
शहरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन
शहरी क्षेत्र के रोजगार बाजार पर कोविड संकट का दोहरा असर पड़ रहा है. एक तरफ तो प्रवासी कामगार के घर लौटने की रफ्तार तेज होने से कामगारों की कमी हो रही है. मैन्यूफैक्चरिंग पर इसका असर पड़ा है. दूसरी ओर मैन्यूफैक्चरिंग बंद होने से मजदूरों का काम नहीं मिल रहा है. ऑटो सेक्टर की कई कंपनियों ने अपने प्रोडक्शन प्लांट बंद कर दिए हैं. कोरोना की पहली लहर की तरह ही दूसरी लहर के दौरान भी हाल के दिनों में बेरोजगारी दर में काफी बढ़ोतरी हुई है. खास कर शहरों में रोजगार की संख्या घटी है।
कोरोना महामारी में बदइंतजामी और अफरातफरी का माहौल
कोरोना वायरस ने तो पूरी दुनिया में कहर मचाया और हर तरफ तबाही का आलम रहा, लेकिन भारत में सरकारी फैसलों के और समुचित तैयारियों के अभाव में आम लोगों को बुरी तरह झेलना पड़ा।
लॉकडाउन के चलते जहां पहले दौर में प्रवासी और दिहाड़ी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी के संकट से लेकर उनकी जान तक पर बन आयी, वहीं दूसरे लहर की चपेट में तो हर कोई परेशान रहा - ऐसा कभी नहीं देखा गया कि लोगों को जीने के ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा हो, अस्पताल में बेड नहीं मिल पाये हों और उसके बाद भी जरूरी दवायें मिलना मुश्किल हो जाये।
अब इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी कि अस्पताल में भर्ती और वेंटिलेटर पर रखे गये मरीज ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ दें। और ऐसे एक-दो जगह नहीं बल्कि कई जगह और कई बार हुआ। जीवन को कायम रखने की जद्दोजगह से जूझते हुए लोग अस्पताल में भर्ती हो गये तो वहां आग लग गयी और मौत से बचने का कोई रास्ता भी नहीं बचा रहा।
मोदी सरकार की लॉकडाउन की पॉलिसी भी समझ से परे रही. पहली बार ऐसे लागू कर दिया गया कि पूरा देश मुश्किल में पड़ गया - और दूसरी बार जब पूरा देश मुश्किल से जूझ रहा था तो केंद्र सरकार ने राज्यों पर जिम्मेदारी डाल कर खुद हाथ खींच लिये।
किसान आंदोलन तो गले की हड्डी ही बन गया है
काले धन के 15-15 लाख तो अमित शाह ने जुमला बता ही दिये थे, लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के फैसले भी लॉकडाउन से ही मिलते जुलते लगे - और सीएए लागू करने के बाद बीजेपी ने बिलकुल वैसा ही प्रयोग कृषि कानून लाकर कर लिया।
जब बीजेपी कोरोना महामारी के मातम में लोगों के साथ खड़े होने के लिए केंद्र में मोदी सरकार के सात साल के जश्न से बच रही है तो छह महीने से दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसान काला दिवस मना रहे हैं - सुना है कि नये सिरे से किसानों की पहल पर सरकार के साथ बातचीत की कवायद शुरू हुई है, लेकिन सच तो ये भी है कि महज एक कॉल दूर बातचीत को लेकर चार महीने बाद भी फोन की घंटी तो नहीं ही बज सकी है।
मोदी कार्यकाल में विदेश नीति
धारा 370 खत्म करने का एक फायदा तो ये हुआ ही कि कश्मीर मुद्दे पर भारत के मजबूत राजनीतिक नेतृत्व को लेकर दुनिया भर में मैसेज गया - और पाकिस्तान को कहीं भी समर्थन नहीं मिल सका. चीन ने जरूर पाकिस्तान के कुछ आतंकवादियों के मामले में पहले साथ दिया, लेकिन बाद में पीछे ही हटना पड़ा।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जहां भारत और चीन के बारे में ये चर्चा हुआ करती रही कि 40 साल में दोनों तरफ से एक गोली भी नहीं चली, वहीं दूसरी पारी इस लिहाज से अच्छी नहीं रही - लद्दाख की गलवान घाटी में देश के 20 सैनिकों को शहादत देनी पड़ी।
भारत-चीन संबंधों को लेकर मोदी सरकार दावे जो भी करे लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को छोड़ भी दें तो विशेषज्ञों के सवालों के भी जवाब नहीं मिल सके - सीमा पर की सही स्थिति हमेशा ही राजनीतिक बयानों की शब्दावली में उलझी हुई नजर आयी।
पाकिस्तान के खिलाफ जरूर मोदी सरकार ने दो बार सर्जिकल स्ट्राइक किये, लेकिन नेपाल और श्रीलंका के साथ रिश्ते बेहतर नहीं हो सके - हां, बांग्लादेश के साथ संबंध संतोषजनक जरूर समझे जा सकते हैं।
05/29/2021 06:49 PM