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Birthday Tipu Sultan: टीपू सुल्तान: 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों से जीता था पहला युद्ध: टीपू सुल्तान को क्यों कहा जाता है देश का पहला मिसाइल मैन.
हाईलाइट
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1. टीपू सुल्तान ने 156 मंदिरों को जमीन और गहने दान किए,
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2. 10000 सोने के सिक्के कांची मंदिर को दान किए,
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3. रॉकेट विज्ञान की नींव डालने का शरीर सुल्तान को जाता है,
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4. टीपू सुल्तान की तोप ₹13 करोड़ में नीलाम हुई,
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5. टीपू सुल्तान की तलवार ₹21 करोड़ में नीलाम हुई।
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मैसूर (Mysore): टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफ़ाबाद) हुआ था. उनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था. उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फ़क़रुन्निसा था. 4 मई 1799 को 48 वर्ष की आयु में कर्नाटक के श्रीरंगपट्टनममें टीपू अपनी आखिरी साँस तक अंग्रेजों से लड़ते लड़ते शहीद हो गए.टीपू सुल्तान को इतिहास न केवल एक योग्य शासक और योद्धा के तौर पर देखता है बल्कि वो विद्वान भी थे.उनकी वीरता से प्रभवित होकर उनके पिता हैदर अली ने ही उन्हें शेर-ए-मैसूर के खिताब से नवाजा था. अंग्रेजों से मुकाबला करते हुए श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए 4 मई 1799 को टीपू सुल्तान की मौत हो गई.
जानें टीपू सुल्तान से जुड़ी ये खास बातें
1. टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला मिसाइल मैन माना जाता है. बीबीसी की एक खबर के मुताबिक, लंदन के मशहूर साइंस म्यूजियम में टीपू सुल्तान के रॉकेट रखे हुए हैं. इन रॉकेटों को 18वीं सदी के अंत में अंग्रेज अपने साथ लेते गए थे.
2. टीपू द्वारा कई युद्धों में हारने के बाद मराठों एवं निजाम ने अंग्रेजों से संधि कर ली थी. ऐसी स्थिति में टीपू ने भी अंग्रेजों को संधि का प्रस्ताव दिया. वैसे अंग्रेजों को भी टीपू की शक्ति का अहसास हो चुका था इसलिए छिपे मन से वे भी संधि चाहते थे. दोनों पक्षों में वार्ता मार्च, 1784 में हुई और इसी के फलस्वरूप 'मंगलौर की संधि' सम्पन्न हुई.
3. टीपू ने 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों के विरुद्ध पहला युद्ध जीता था.
4. 'पालक्काड किला', 'टीपू का किला' नाम से भी प्रसिद्ध है. यह पालक्काड टाउन के मध्य भाग में स्थित है. इसका निर्माण 1766 में किया गया था. यह किला भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के अंतर्गत संरक्षित स्मारक है.
5. टीपू सुल्तान खुद को नागरिक टीपू कहा करता था.
मैसूर (Mysore) के राजा टीपू सुल्तान (King Tipu Sultan) पिछले कुछ सालों से देश के राष्ट्रीय पटल पर तमाम वजहों से चर्चा में आते रहे हैं. आज उनका जन्मदिन है. टीपू ने अपने समय में कई ऐसे आविष्कार किए थे, जिसने उनकी सेना को ताकतवर बना दिया था. सेना में पहली बार हल्के दर्जे के रॉकेट का इस्तेमाल का श्रेय भी उन्हें जाता है.
टीपू सुल्तान की छवि पर किसी को कोई शक नहीं है. वो है मिसाइल मैन की छवि. ये भी कहा जाता है कि देश की किसी सेना में उन्होंने पहली बार बारूदी रॉकेट्स का इस्तेमाल किया था. जो काफी हिट रहा था.
टीपू सुल्तान ने अपने शासन में एक ऐसा प्रयोग किया, जो उन्हें इतिहास में मजबूत स्थान देता है. टीपू सुल्तान ने युद्ध के दौरान छोटे-छोटे रॉकेट का इस्तेमाल किया था. दुनिया में वो अपनी तरह का पहला प्रयोग था इसलिए उन्होंने दुनिया का पहला मिसाइल मैन भी कहा जाता है.
सेना में रॉकेट तकनीक का जमकर इस्तेमाल
दक्षिण में राज्य विस्तार के दौर में टीपू सुल्तान और उनके पिता ने युद्ध में रॉकेट तकनीक का जमकर इस्तेमाल किया. दुश्मन की सेना को नुकसान पहुंचाने में तो रॉकेट ज्यादा कारगर नहीं थे लेकिन खलबली जरूर मचा देते थे.उस दौर में टीपू की सेना जिन रॉकेट का इस्तेमाल करती थी वो छोटे और गजब मारक होते थे इन रॉकेटों को लॉन्च करने के लिए लोहे की नली का इस्तेमाल किया जाता था.
ये रॉकेट 2 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम हुआ करते थे. इतिहासकारों के मुताबिक पोल्लिलोर की लड़ाई में इन्हीं रॉकेटों के इस्तेमाल ने पूरा खेल ही बदलकर रख दिया. इससे टीपू की सेना को खासा फायदा हुआ.
हैरान रह गए थे अंग्रेज
अंग्रेजों के खिलाफ पोल्लिलोर की लड़ाई में जब उन्होंने रॉकेट का इस्तेमाल किया तो वो हैरान रह गए. इसी रॉकेट की तकनीक का इस्तेमाल उन्होंने सम्राट नेपोलियन के खिलाफ किया था. इतिहासकारों के मुताबिक ये प्रयोग उन्हें ज्यादा फायदा नहीं दिला सका. क्योंकि वो किलेबंदी को नहीं भेद सके थे.
अंग्रेज इन रॉकेट को अपने साथ ले गए
भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल कार्यक्रम के जनक एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी किताब 'विंग्स ऑफ़ फ़ायर' में लिखा था कि मैंने लंदन के साइंस म्यूजियम में टीपू सुल्तान के कुछ रॉकेट देखे. ये उन रॉकेट में से थे जिन्हें अंग्रेज अपने साथ ले गए थे.
जब टीपू सुल्तान की सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में बारूदी रॉकेट का इस्तेमाल किया तो वो हैरान रह गए. इससे अंग्रेज सेना को बहुत नुकसान हुआ. वो सोच भी नहीं सकते थे कि किसी भारतीय राजा की सेना के पास ये तकनीक भी होगी.
नासा के सेंटर में टीपू के रॉकेट की पेंटिंग
अब्दुल कलाम ने किताब में आगे लिखा कि नासा के एक सेंटर में टीपू की सेना की रॉकेट वाली पेंटिग देखी थी. कलाम लिखते हैं, "मुझे ये लगा कि धरती के दूसरे सिरे पर युद्ध में सबसे पहले इस्तेमाल हुए रॉकेट और उनका इस्तेमाल करने वाले सुल्तान की दूरदृष्टि का जश्न मनाया जा रहा था. वहीं हमारे देश में लोग ये बात या तो जानते नहीं या उसको तवज्जो नहीं देते."।
11/20/2020 11:49 AM